Sunday 27 May 2012







 कहीं और चल ज़िन्दगी

हो  गई  है  अधूरी  ग़ज़ल  ज़िन्दगी, 
काफ़िया अब तो अपना बदल ज़िन्दगी।

लड़खड़ाई, गिरी, गिर के फिर उठ गई,
डगमगाई  बहुत अब  सम्भल ज़िन्दगी।

ज़ुल्मत--शब से लड़ तू सहर के लिए,
स्याह घेरों  से बाहर  निकल ज़िन्दगी।

ख्वाब  खण्डहर  हुए  तो  नई  शक्ल दे,
कर दे अब कुछ तो रददो-बदल ज़िन्दगी।


जब  डराने  लगें तुझको खामोशियाँ
,तोड़ कर मौन शब्दों में ढल ज़िन्दगी।

छोड़  दे ये शहर गर माफ़िक तुझे,
चल यहाँ से कहीं और चल ज़िन्दगी।

आज  नाकाम  है  "आरसी"  क्या हुआ,
कल तेरी होगी फिर से सफल ज़िन्दगी।

             -आर० सी० शर्माआरसी

Sunday 9 October 2011

पानी को तो पानी लिख..



        मिथ्या जीवन के कागज़ पर सच्ची कोई कहानी लिख,
        नीर- क्षीर यदि कर पाए, पानी को तो पानी लिख।
                                     
        सारी  उम्र  गुज़ारी  यूँ  ही  रिश्तों  की तुरपाई  में,
        मन का रिश्ता सच्चा रिश्ता बाकी सब बेमानी लिख।

        अपना  घर  क्यों  रहा अछूता सावन की बौछारों से,
        शब्द-कोष में शब्द नहीं तो मौसम की नादानी लिख।

             हारा जगत दुहाई  देकर, ढाई आखर की हर बार,
             तू राधा का नाम लिखे तो मीरा भी दीवानी लिख।

             पोथी और किताबों ने तो अक्सर मन पर बोझ दिया,
             मन बहलाने  के  खातिर  ही  बच्चे  की शैतानी लिख।

             अंगुली का नाख़ून कटा कर कहलाए कुछ लोग शहीद,
             दीवारों  में चिने  गए  जो, तू  उनकी  कुर्बानी  लिख।

             बहता  पानी  रुकता  देखा, बांधों  के  अवरोधों  से,
             नहीं किसी के रोके रुकती, उसका नाम जवानी लिख।

             कोशिश करके देख "आरसी" पौंछ सके तो आंसू पौंछ,
             बाँट  सके  तो  दर्द  बाँट  ले, पीर सदा बेगानी लिख।